हिन्दी भाषा (hi) | भाषा बदलें (Change Language)
By: Md. Mokhlesur Rahman and Philip Mathew Birkey
Published: 15-06-2015


This article is from ECHO Asia Note #24

सम्पादक की टिपण्णी- पिछले कई वर्षों से इको एशिया में समानचित अनुसंधान, प्रशिक्षण का संचालन, तथा जैवनियंत्रण कवक जिसे ट्राइकोडर्मा तथा ब्यूवेरिया के नाम से जाना जाता है के उपयोग को बढ़ावा दिया है। यह लेख संक्षिप्त में मेनोनाइट सेंट्रल कमिटी (एम. इस. सी.) बांग्लादेश एवं बांग्लादेश कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा, ट्राइको खाद के उपयोग करने की तकनीक की जांच परिणामों को बता रहा है।

प्रस्तावना-

ट्राइको खाद क्या है ?

ट्राइको खाद एक ऐसा उत्पाद है जिसको, जब लाभकारी कवक के बीजाणु, ट्राइकोडर्मा प्रजाति, का उपयोग करके खाद तैयार की जाती है। ट्राइकोडर्मा एक प्राकृतिक प्रतिद्वंदी है बहुत से हानिकारक कवकों के प्रति, जब इस को खाद में मिलाया जाता है, तब यह खेतों में फसलों के लिए एक कवक रोधी का कार्य करती है।

ट्राइकोडर्मा इनोकुलुम क्या है ?

ट्राइकोडर्मा इनोकुलुम, प्रजाति का एक ताजा एवं शुद्ध संवर्धन है जिसका उपयोग ट्राइकोडर्मा खाद बनाने में किया जाता है। आमतौर पर इसको प्रयोगशाळा में ही तैयार किया जाता है, जहां पर एक विशेष प्रजाति को पृथक एवं गुणित किया जा सकता है किसी एक माध्यम पर बिना किसी दूसरी प्रजाति के कवक के संदूषण से।

ट्राइकोडर्मा लीचेट क्या है ?

ट्राइकोडर्मा लीचेट एक तरल पदार्थ है, जो एक खाद के ढेर में से प्राप्त होता है, जब ट्राइको खाद बनाई जाती है। इस लीचेट में अकसर ट्राइकोडर्मा के जीवाणु की मात्रा प्रति इकाई उतनी ही मात्रा की खाद से अधिक पायी जाती है। लीचेट में पौधों के लिए पोषक तत्व अधिक होतें हैं, जिसको पानी में घोलकर तनु रूप में पौधों पर छिड़का भी जा सकता है।

ट्राइको खाद बनाने के लिए हमें क्या चाहिए ?

२००८ में एम.इस.सी. से बी.ऐ. आर. आई. ने ट्राइको खाद पर अनुसंधान करने के लिए संपर्क किया। बी.ऐ. आर. आई. ने इस खाद को बनाने की खोज कर ली थी, परन्तु उनको विभिन्न संगठनों तथा किसानों की मदद चाहिए थी जिससे वह बांग्लादेश में इसको उपयोग में ला सकें, क्योंकि वह इस कार्य के लिए सक्षम नहीं थे।  एम. एस. सी. ने अपने एक साथी कमेटी को (जी. के. एस. एम.) को संपर्क किया।  यह समुह पहले से ही वर्मी कम्पोस्ट (केंचुए की खाद) का कार्य कर रहा था, तथा उन्होंने इस अनुसंधान में मदद करने की स्वीकृति दे दी।  खोज एवं खेतों के परिक्षण के द्वारा एक मिश्रण तैयार किया गया जो निम्नलिखित है-

. २५% गाय का गोबर

. ५% बुरादा

. ३६% मुर्गी का अवशिष्ट (कैल्शियम तथा नाइट्रोजन उपलब्ध कराने के लिए)तथा मिटटी से होने वाली बीमारियों को कम करने के लिए)

. ३३% जल कुंभी (पोटेशियम उपलब्ध कराने के लिए)

. ०.५ % राख (पोटेशियम उपलब्ध कराने के लिए)

. ०.५ % मक्का की भूसी (इनोक्युलम के चारे के लिए)

⇢गाय के गोबर, मुर्गी की बीट, बुरादा तथा जल कुम्भी के लाभ-

इस मिश्रण कई कारणों से उपयोग में लाया गया।  गोबर तथा जल कुम्भी बांग्लादेश में आसानी से उपलब्ध है, तथा पोषक तत्त्व एवं जैविक पदार्थ के बहुत अच्छे स्रोत हैं।

Tricho-Composting 1

Tricho-Composting 2(above) Md. Aftab Ali is showing his composting facility. Blue plastic underneath. The rings facilitate the collection of Trichoderma leachate. (below) Md. Bazlur Rashid is mixing the composting material before putting it in the composting bins or rings.

मुर्गी की बीट जीवाणुनाशक के रूप में उपयोग की जाती है।  बांग्लादेश में एम. एस. सी. शोध कार्यों में, हमने यह पता लगाया कि, टमाटर तथा बैंगन में मुर्गी की बीट का उपयोग एक जीवाणुनाशक के रूप में करने पर जीवाणुओं पर नियंत्रण किया जा सकता है।  जब इस बीत का उपयोग ट्राइको खाद में किया जाता है तो इस  गुण को ट्राइको खाद में भी देखा जा सकता है। मुर्गी की बीट में कुछ विशेष फिनोलिक पदार्थ होतें हैं जो जीवाणुनाशक का कार्य करते हैं।  मुर्गी को अवशिष्ट में नाइट्रोजन तथा कैल्शियम की भी प्रचुर मात्रा पायी जाती है, जो पौधों में होने वाली बीमारियां जैसे जीवाणुज म्लानि, कृमि संक्रमण तथा आद्र पतन से भी बचाता है।

जल कुंभी बहुत अधिक मात्रा में जैविक पदार्थ उपलब्ध कराता है, परन्तु इससे कार्बन/नाइट्रोजन का अनुपात संतुलित नहीं है, इसमें कार्बन बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है परन्तु नाइट्रोजन की मात्रा बहुत कम होती है।  इसका मतलब है की इसमें नाइट्रोजन को अवशोषित करने तथा रोक के रखने की क्षमता बहुत अधिक है।  मुर्गी के अवशिष्ट में अधिक नाइट्रोजन पायी जाती है जिसको खाद बनाने की प्रक्रिया के दौरान आसानी से निकाला जा सकता है तथा यह अमोनिआ के वातावरण में लुप्त हो जाता है । जलकुम्भी को ट्राइको खाद में उपयोग करने से, नाइट्रोजन की उपघन प्रक्रिया को रोका जा सकता है । हालांकि जानवरों की मूत्र का उपयोग ट्राइको खाद में बांग्लादेश में नहीं किया गया हैफिर भी यह नाइट्रोजन का एक वैकल्पिक स्रोत है ।यदि मुर्गी के अवशिष्ट को लिया जाये तो जल कुम्भी खाद में कार्य करती है । 

राख खाद में खनिज तत्व प्रदान करती है, विशेष रूप से पोटैशियम  

यह सभी पदार्थ बंगलादेश में बहुत ही सरल दाम में, वैकल्पिक स्रोतों की तुलना में, आसानी से उपलब्ध हो जातें हैं ।हालांकि बाज़ार के दामों पर निरंतर नजर रखने की आवश्यकता है, क्योंकि दाम तथा उपलब्धता इन पदार्थों की बदलती रहती है । 

ट्राइकोडर्मा इनोकुलम में मिश्रित करना 

इनोकुलंट मिश्रण, जिसका उपयोग बंगलादेश में होता है, एक लीटर ट्राइकोडर्मा इनोकुलम को ०.५कि.ग्रा. शीरे तथा २०-२५ ली. पानी, प्रति टन खाद मिलाकर तैयार किया जाता है ।इस मिश्रण को पूरी तरह मिलाकर खाद के कनस्तर में रखा जाता है ।एम्.सी.सी. बंगलादेश ने इस खाद के मिश्रण की एक परत प्रक्रिया के द्वारा कनस्तर में रखा, जिस में वह हर परत पर इनोकुलंट मिश्रण का छिड़काव करते थे ।परन्तु यह देखा गया की कई कारण से लेयरिंग प्रक्रिया अच्छी साबित नहीं हुई: प्रक्रिया में बहुत अधिक मेहनत तथा लागत लगती थी, इसमें खाद को बार-बार मिलाना पड़ता था (एक बहुत ही बदबूदार कार्य जिसे कोई मज़दूर नहीं करना चाहता था), तथा मिलाने से तापमान में अंतर आ जाता था तथा कवक के लिए गर्म तापिय वातावरण विशुद्ध हो जाता था । नई प्रक्रिया बेहतर साबित हुई, यदि खाद को अच्छी तरह से मिलाया जाये, नमी की मात्रा सही रखी जाए तथा खाद को दबाया न जाये । 

खाद के कनस्तरों का नाप तथा लैट्रिन रिंग्स का उपयोग 

डब्बों की ऊंचाई जिनको खाद बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है सही दबाव बनाये रखने के लिए बहुत ही आवश्यक है । हमारे कर्मचारी ने अनुसंधान में यह पाया की 10’x5’x4.5’ के डब्बे खाद बनाने के लिए इष्टतम आकार है ।यह नाप इतना छोटा है कि खाद को सही मात्रा में वायु मिल पाए, तथा इतना बड़ा भी है की ट्राइकोडर्मा इसमें सही गर्म तापमान भी उत्पादित कर सकें जिससे यह प्रक्रिया तेज़ी से पूर्ण हो । यदि एक कनस्तर बहुत बड़ा होगा, वायु की कमी हो जाएगी। और यदि यह कनस्तर बहुत छोटा होगा तो ट्राइकोडर्मा का कार्य धीमा हो जायेगा।यदि इन ज़रूरतों को पूरा कर दिया जाये, एम.सी.सी. बंगलादेश अधिकतर कंक्रीट से बने लैट्रिन रंगों का उपयोग इन डब्बों के लिए कर रही है।
http://farm6.static.flickr.com/5245/5243829106_414e9580b2.jpg). 

यह रिंग एक के ऊपर एक रखकर तीन की ऊंचाई पर रखी जाती है और फिर इनमें खाद भर दी जाती है, जो लगभग 230-250 कि.ग्रा. का उत्पाद उपलब्ध कराता है।  इन रिंगों का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि यह  बंगलादेश के किसानों को आसानी से उपलब्ध हो हैं, तथा यह बिलकुल सही नाप की होती हैं यदि किसान पास केवल एक गए हो तो।  एक 10’x5’x4.5’ के डिब्बे में एक कंक्रीट से बनी हुई तली जिसमें नालियां बनी होतीं हैं ताकि वह लिचेट को एकत्रित कर सके जो खाद से निकलती है। एम.सी.सी. बंगलादेश के लैट्रिन रिंग के डब्बे आर्थिक रूप से सही नहीं हैं। इसलिए इन डब्बों के नीचे पॉलिथीन की थैली का उपयोग किया जाता है, जो एक जलरोधक का कार्य करती है, जब तक कि इसमें छेद न हो जाये।  लिचेट को पहले सात दिनों तक एकत्रित करके पुनः खाद में डाल देना चाहिए। इसके बाद लिचेट को इकठ्ठा करके बोतलों में रख लेते हैं, क्योंकि इसके बहुत से उपयोग हैं (बोतल में बंद करने की प्रक्रिया सावधानी पूर्वक करनी चाहिए, क्योंकि इस मिश्रण से अभी भी गैस निकलती है जिससे बोतल फूट सकती है। 

डब्बों पर नज़र रखना तथा नियमित रख रखाव

खाद को डब्बों में भरने के पश्चात, उनपर नज़र रखना ज़रूरी है।  एम.सी.सी. बंगलादेश के स्टाफ द्वारा यह बताया गया है की, हर 7-15 दिनों में थर्मामीटर को एक लकड़ी पर लगाकर इन डब्बों में डालकर तापमान का निरिक्षण करना चाहिए।  एक बार ट्राइकोडर्मा बढ़ने लगती है तब खाद का तापमान 50-60oC, तक बढ़ सकता है, यह बाहर के वातावरण के तापमान पर निर्भर करता है तथा डब्बों के आकार पर भी।  यदि तापमान में कमी दिखाई दे तो यह ट्राइकोडर्मा के लिए कमी दर्शाता है, या फिर की खाद बनने की प्रक्रिया लगभग पूर्ण हो चुकी है।  एक और देखने का तरीका है, एक लकड़ी को झाड़ के बीच में डालकर यह देखने का की सड़न  प्रक्रिया कितनी पूरी हो चुकी है।  गंध के द्वारा भी प्रक्रिया पूरी होने का संकेत मिलता है।  प्रक्रिया पूरी होने पर एक मीठी सी गंध आती है जो शुरुआत में सड़ने की बदबूदार गंध से अलग होती है। एम.सी.सी. बंगलादेश के अनुभव के अनुसार गर्मियों में, जब बंगलादेश का तापमान लगभग 35oC होता है, खाद बनाने की प्रक्रिया लगभग 45 दिनों में पूरी होती है।  सर्दी में जब तापमान 10oC तक पहुँच जाता है तो यह प्रक्रिया लगभग 70 दिन है। 

ट्राईको खाद का उपयोग:

ट्राईको खाद का उपयोग विशेष रूप से मृदा संशोधन के लिए किया जाता है।  जैसे की परंपरागत खाद करती है उसी तरह यह भी मृदा को बेहतर बनाती है, pH मान सही करती है, तथा मृदा तापमान को  करती है। इसके उपयोग की दर 8-10 कि.ग्रा./दिशमलव खेत में करनी चाहिए। इसका उपयोग खेतों को तैयार करते समय तथा/अथवा दूसरी बार में/अंत में किसानों के पौधों के लिए करना चाहिए। ट्राईकोखाद के परंपरागत उपयोग के अलावा और भी बहुत से उपयोग हैं:

  •  ट्राईको खाद एक प्राकृतिक कवक रोधी है जो हानिकारक कवकों से सुरक्षा प्रदान करता है (पाइथियम प्रजाति, स्क्लेरोटियम प्रजाति, फाइटोफथोरा प्रजाति, रहाइजोक्टोनिआ प्रजाति, फ्युसेरियम प्रजाति, बोट्रिटिस प्रजाति, स्क्लेरोटोनिआ प्रजाति) जो अधिकतक मृदा जनित रोग तथा कवक पतन के लिए जाने जाते हैं।     
  •  मुर्गी अवशिष्ट के उपयोग से, ट्राईकोखाद जीवाणु पतन तथा कृमि संक्रमण से बचाव उत्पन्न करता है;
  •  ट्राईको खाद का हार्मोनल असर भी देखा गया है, जो एक वृद्धिकारक की तरह कार्य करता है; तथा 

ट्राइकोडर्मा लीचेट के उपयोग

जैसे कि पहले बताया जा चुका है, ट्राइकोडर्मा लीचेट, जो ट्राइकोडरमाखाद का एक उपोत्पाद है,के बहुत से उपयोग हैं। बंगलादेश  चुनौती यह है की ट्राइकोडर्मा इनोक्युलम उगाना किसानों को अत्यधिक कठिन लगता है, और इसके लिए प्रयोगशाला की आवश्यकता होती है। इसमें किसानों को ट्राइकोडर्मा इनोक्युलम आसानी से प्राप्त नहीं होती। इस समस्या के समाधान के लिए एम्.सी.सी. बंगलादेश ने हमारे साथियों के साथ मिलकर शोध कार्य किये तथा, यह पता लगाया कि ट्राइकोडर्मा लीचेट में इतने बीजाणु पाए जातें हैं कि, छः पीढ़ियों तक खाद का उत्पादन किया जा सकता है। इसके अलावा और भी शोध कार्य किया जा रहा है यह देखने के लिए कि इस तरह उत्पादित खाद में भी वही सारे लाभ प्राप्त होतें हैं जैसे की ताज़ा प्राप्त इनोकुलम से मिलते हैं।    

 ट्राइकोडर्मा लीचेट के और दूसरे उपयोग बंगलादेश में पर्ण छिड़काव  में भी होता है (परन्तु केवल इस पर ही सिमित नहीं है) यह इसलिए क्योंकि यह वृक्ष को उनके उत्पादन के समय पर पोषण तथा हार्मोनल बढ़ावा देता है।

एक किसान की कहानी निम्नलिखित दी गयी है, जो बोगरा के निकट रहता है, तथा उसने त्रिको खाद के उपयोग से अत्यधिक लाभ प्राप्त किया है:


मो. अब्दुल मानन की कहानी

Tricho-Composting 3

Tricho-Composting 4(above) Md. Abdul Mannan beside a pheromone trap in his pointed gourd field. (below) Md. Abdul Mannan in his Tricho-composting shed-showing the compost.

मो. अब्दुल मानन  बंगलादेशी किसान है जो बोगरा जनपद में रहता है। उसका मुख्य व्यवसाय है सब्ज़ियों का उत्पादन, उसके पास एक पुत्री एवं दो पुत्र हैं, जो कालेज में शिक्षा प्राप्त कर तहें हैं। मो. अब्दुल मानन अपनी वृद्ध माता के साथ रहतें हैं। उनके परिवार में कुल पांच व्यक्ति रहतें हैं।

मो. अब्दुल मानन के पास १२० भूमि का दशमंलव है, जहाँ वह सब्ज़ी तथा चावल बहुत सालों से उगा रहा है। मो. अब्दुल मानन ने यह देखा कि उसको प्रति वर्ष अधिक मात्रा में कीटनाशक का उपयोग अपनी सब्ज़ी तथा चावल की खेती को कीटों से बचाने के लिए करना पड़ता है।  उसको अधिक मात्रा में उर्वरक का भी उपयोग अपने खेतों में करना पड़ता है।  इन महंगी निविष्टियों के कारण वह अपनी  लाभ नहीं उठा पा रहा था। उसको अपने परिवार के खर्चों के उठाने में तथा अपने बच्चों की पढाई के खर्चों को उठाने में परेशानी हो रही थी।

एक दिन मो. अब्दुल मानन को जी.यु.पी. (ग्रामीण उनियान प्रोकोल्पो) के अंतर्गत लाभार्थी चुना गया, यह एक फ़ूड सिक्योरिटी प्रोजेक्ट का प्रोग्राम है जिसको एम.सी.सी. बंगलादेश वित्त पोषित करता है। जी.यू.पी. ने एकीकृत हानि कारक कीट प्रबंधन तकनीक को सब्ज़ियों के उत्पाद में लागू किया है।  मो. मानन ने जे.पी.यू. की आँगन बैठकों में आई.पि.एम. के बारे में जानकारी हासिल की। उसने पोस्टर एवं विज्ञापन बोर्ड के द्वारा भी जानकारी ली जिनको जी.यू.पी. तथा एम.सी.सी. ने उस क्षेत्र में जहाँ पर जी.यू.पी.के कुछ प्रोजेक्ट चल रहे थे लगाए थे। इस प्रकार जी.यू.पी.द्वारा परिक्षण पाने के बाद, मो. मानन ने ट्राईकोखाद तथा केचुओं की खाद बनाने का कार्य अपने घर से आरम्भ किया।  उसने फेरोमोन के उपयोग के बारे में भी जानकारी हासिल की कि किस प्रकार हानिकारक कीटों को नियंत्रित किया जाये। इस प्रकार जब उसने खाद तथा फेरोमोन्स का उत्पादन कर लिया ओट उसने उनका उपयोग अपनी सब्ज़ियों की खेती में किया।  ट्राईकोखाद कृमि खाद तथा फेरोमोन्स के उपयोग के पश्चात, मो. मानन ने काफी हद तक उर्वरक तथा कीटनाशकों के खर्च को कम कर लिया है। इसके साथ साथ वह उत्तम किस्म की सब्ज़ियां भी उगाता है।  अभी हाल ही में, उसने बैंगन, देसी सेम, लोभिया, परवल तथा मिर्च को उगाया। जी.यू.पी. के द्वारा सीखे हुए तरीकों से उसने जैविक खेती करि तथा उच्च उत्पादन प्राप्त किया, तथा सुन्दर रंग वाली स्वस्थ सब्ज़ियां उगायीं। पीछे वर्ष, मो. मानन ने 75000 बंगलादेशी टका (865 USD) अपनी सब्ज़ियों को बेचकर कमाए। वह आई.पी.एम. की तकनीक के द्वारा प्राप्त लाभ से अत्यंत प्रसन्न है, क्योंकि आई.पी. एम. तकनीक के द्वारा ही उसने पिछले वर्षों  अधिक कमाई की है। अब वह तथा उसका परिवार सुखी है, क्योंकि उनकी आमदनी बेहतर हो गयी है। इस सफलता के कारण, मो. मानन आई.पी.एम. की तकनीक का प्रयोग अपने खेओं में अब भी कर रहा है तथा वह कहता है कि वो इस तकनीक का प्रयोग भविष्य में भी करता रहेगा।

References

Celar, F. and N. Valic. 2005. Effects of Trichoderma spp and Glicladium roseum culture filtrates on seed germination of vegetables and maize. Journal of Plant Disease Protection, 112 (4): 343-350.

Deepthi, K. P. and Reddy, P. N. 2013. Compost teas – an organic source for crop disease management. International Journal of Innovative Biological Research, 2 (1): 51-60.

Faruk, M. I., Rahman, M. L., Ali, M. R., Rahman, M. M. and M. M. H. Mustafa. 2011. Efficacy of two organic amendments and a nematicide to manage root-knot nematode (Meloidogyne incognita) of tomato (Lycopersicon esculentum L.). Bangladesh Journal of Agricultural Research, 36(3): 477-486.

Gapasin, D. P. 2007. Integrated pest management collaborative research support program. South Asia (Bangladesh) Site Evaluation Report, 2p.

Hoyos-Carvajal, L., S. Ordua and J. Bissett. 2009. Growth stimulation in bean (Phaseolus vulgaris L.) Trichoderma. Biological Control, 51: 409-416.

Knodel, Janet J., Curtis H. Petzoldt, and Michael P. Hoffmann, 1995. Pheromone Traps - Effective Tools for Monitoring Lepidopterous Insect Pests of Sweet Corn. Vegetable Fact Sheets, Cornell University. http://www.nysipm.cornell.edu/factsheets/ vegetables/swcorn/pheromone_traps.pdf Compost Fundamentals, 2015. Whatcom County Composting, Washington State University. http://whatcom.wsu.edu/ag/ compost/fundamentals/consideration_ reclamation.htm

Inbar, J., M. Abramsky, D. Cohen and I. Chet. 1994. Plant growth enhancement and disease control by Trichoderma harzianum in vegetable seedlings growth under commercial conditions. European Journal of Plant Pathology, 100: 337- 346.

Luu, K. T. and K. D. Getsinger. 1990. Seasonal Biomass and Carbohydrate Allocation in Water Hyacinth. J. Aquat. Plant Manage. 28: 3-10.

Lynch, J. M., K. L. Wilson, M. A. Ousley and J. M. Wipps. 1991. Response of lettuce to Trichoderma treatment. Letters in Applied Microbiology, 12: 59-61.

Mathew A. K., Bhui, I., Banerjee, S.N., Goswami, R., Chakraborty, A.K., Shome, A., Balachandran, S. and S. Chaudhury. 2014. Biogas production from locally available aquatic weeds of Santiniketan through anaerobic digestion. Clean Technologies and Environmental Policies. 10.1007/s10098-014-0877-6 http://link.springer.com/ article/10.1007/s10098-014- 0877-6#page-1

Mennonite Central Committee (MCC) Bangladesh Research Report 33 & 34.

Nahar, M. S., Rahman, M. A., Kibria, M. G., Karim A. N. M. R. and S. A. Miller. 2012. Use of tricho-compost and tricholeachate for management of soil-borne pathogens and production of healthy cabbage seedlings Bangladesh. Journal of Agricultural Research, 37(4): 653-664.

Rabeerdran, N., D. J. Moot, E. E Jones and A. Stewart. 2000. Inconsistent growth promotion of cabbage and lettuce from Trichoderma isolates. New Zealand Plant Protection, 53: 143-146.


टैग

Compost

क्षेत्र

Asia